बैंकों के विलय के कारण जो चुनौतियाँ सामने आती हैं, उनमें से एक मानवीय संबंधों के मुद्दों में विशेष रूप से स्थानान्तरण के मामलें होते हैं और दूसरा अनुशासनात्मक मामलों का निपटान होता है। हालांकि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अनुशासनात्मक नियम कमोबेश सामान्य हैं, फिर भी घरेलू जाँच का क्षेत्र काफी हद तक प्रत्येक बैंक में उसकी कार्य-संस्कृति, सांस्कृतिक नैतिकता, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आदि से प्रभावित होता है। विभिन्न बैंकों में की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही में अलग-अलग प्रथाएं होती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि - (i) हर बैंक का अनुभव आधार भिन्न होता है, (ii) अनुशासनात्मक मामलों के निष्पक्ष और न्यायसंगत संचालन को सुनिश्चित करने में प्रबंधन द्वारा प्रदान किया गया समर्थन भी हर बैंक में अलग-अलग होता है, (iii) हर बैंक में कामगार यूनियनों / अधिकारी संघों की आंतरिक शक्ति भी भिन्न होती है, जो अच्छी तरह से प्रशिक्षित रक्षा प्रतिनिधियों का सहयोग आरोपित कर्मचारी या आरोपित अधिकारी को उपलब्ध कराते हैं। पिछले कई वर्षों से चार्ज-शीटों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और कामगार यूनियनों / अधिकारी संघों के सामने यह चुनौती है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए वे अच्छी संख्या में 'रक्षा प्रतिनिधि' उपलब्ध कराएँ। जब भी बैंकों का विलय होता है मानव संसाधन प्रबंधन को लेकर कुछ चुनौतियाँ सामने आती हैं, जिसमें विशेष रूप से यह सुनिश्चित करना होता है कि एक नई इकाई में कर्मचारियों का सुचारुरूप और सामंजस्यपूर्ण एकीकरण हो जाए। जब भी बैंकों का विलय होता है, तो कार्य-नीतियों में छोटे बैंक की तुलना में बड़े बैंक का अधिक प्रभाव होता है।
संक्रमण अवधि (transition period) में बैंकों की प्रमुख चिंता अनुशासनात्मक कार्यवाही से निपटना है। ऐसी जानकारी मिल रही है कि संक्रमण अवधि में चार्जशीट की सँख्या वृद्धि पर हैं क्योंकि बैंक यह चाहते हैं कि लंबित मामले जल्दी से समाप्त हो जाएँ। यदि संक्रमण अवधि में अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामले नहीं निपट पाते हैं तो दिक्कत होने की संभावना है, क्योंकि हर बैंक की कार्य संस्कृति में अंतर होता है। फिर एक और चुनौती अनुशासनात्मक मामलों को संभालने की प्रक्रिया है, क्योंकि अनुशासनात्मक कार्यवाही का प्रबंधन हर बैंक में भिन्न होता है। कमोबेश अनुशासनात्मक कार्यवाही संबंधित बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों के रवैये से काफी प्रभावित होती है। इसी तरह, जब भी कोई मामला जहाँ आरोप साबित हो जाते हैं, अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा निपटाया जाता है, तो सजा देने में बैंकों के बीच अंतर होता है। विलय के मामले में, बड़े बैंकों का बड़ा भाई रवैया हमेशा कर्मचारियों के दिमाग में मनोवैज्ञानिक तरीके से काम करता है। विलय के पश्चात बैंक में अधिकारियों और साथ ही अवार्ड स्टाफ का एकीकरण उस सीमा तक प्रभावित होता है और इसके परिणामस्वरूप बैंकों में बहुत से अधिकारी और अवार्ड स्टाफ स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेना चुनते हैं, क्योंकि विलय के बाद बैंक में अनुशासन के नाम पर उन्हें हमले की आशंका होती है और अनजाना डर सताता है।
बैंकों को विलय किए जाने पर प्रत्येक बैंक में अनुशासनात्मक मामलों के प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए बैंकों के विलय के बाद अनुशासनात्मक मामलों को संभालने से पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी को विलय हुए बैंक में प्रचलित अनुशासन, कार्य पद्धति, मानव संसाधन प्रथाओं आदि से सम्बंधित धारणाओं की स्पष्ट समझ होनी चाहिए। यह समझना बहुत जरूरी है कि विलय होने पर बैंक में अनुशासनात्मक कार्यवाही का क्षेत्र बहुत संवेदनशील विषय है। ताकि विलय पश्चात छोटे बैंक के कर्मचारियों और अधिकारियों को यह महसूस नहीं हो कि वे बड़े बैंक प्रबंधन द्वारा उत्पीड़न के अधीन हैं। एक तरफ बैंक प्रबंधन को इस ओर विशेष ध्यान देने की जरुरत है कि त्वरित रूप से अनुशासनात्मक मामले निपटाएं जाएं और साथ ही अधिकारी संघों और अवार्ड स्टाफ यूनियनों को यह देखने के लिए विशेष रुचि लेनी चाहिए कि विलय के समय कार्मिक विभागों में लंबित मुद्दों और मामलों पर प्रबंधन द्वारा ठीक तरह से ध्यान दिया जा रहा है। अधिकारी संघों और अवार्ड स्टाफ यूनियनों को यह ध्यान भी रखना चाहिए कि जो अधिकारी या कर्मचारी अनुशासनात्मक कार्यवाही की जद में आ गए हैं, उन्हें उचित बचाव प्रदान करें ताकि निर्दोष कर्मचारियों और अधिकारियों का उत्पीड़न न हो, क्योंकि शीर्ष स्तर पर अधिकारियों के मन में संभावित पूर्वाग्रह व्याप्त हो सकता है।
- केशव राम सिंघल